जब हम इतिहास या अतीत पर नजर डालते हैं तो हमें कई अच्छे और बुरे अनुभवों का सामना करना पड़ता है। कभी वे आज की राजनीतिक स्थिति और विचारों के विरोधी होते हैं तो कभी अनुकूल।
लेकिन जब मुस्लिम आक्रमणकारियों के इतिहास के बारे में लिखने और बात करने का समय आता है, तो इसे मुस्लिम विरोधी बोला जाता है। औरंगजेब या अफजल खान के बारे में बुरा बोलना मतलब आज के मुसलमानों को निशाना बनाना है ये दुष्प्रचार किया जाता है।
इस प्रचार में कोई सच्चाई नहीं है. बेशक अफजल खान एक मुस्लिम था. लेकिन क्या उसके मुस्लिम होनेसे उसके अपराध जैसे मंदिर विध्वंस करना, अपनी ही 65 पत्नियों की नृशंस हत्या करना को उचित ठहराता है? या फिर औरंगजेब मुसलमान होने की वजह से उसका अपने ही पिता को कैद करना, गैर-मुसलमानों पर धर्म के आधार पर टैक्स लगाना, जबरन धर्म परिवर्तन कराना और गर्वसे मंदिरों को तोड़ने का सरकारी रिकॉर्ड बनाना, अच्छा सिद्ध हो जाता हैं? बिल्कुल नहीं।
कई लोगों को ये आपत्ति है कि उनकी मुस्लिम पहचान को उजागर क्यों किया जाए? इसका कारण है कि उन्होंने खुद उस पहचान को हर जगह हाईलाइट किया है. उनका अपना दावा है कि ऊपर वर्णित अमानवीय कृत्य इन राक्षसों ने बड़े गर्व से किया है, और इस्लाम के आदेश पर किया है।
लेकिन इन दरिंदो को आज के मुसलमानों से जोड़ने का सवाल ही नहीं उठता. जो कुछ भी हुआ वह उन क्रूर आक्रमणकारियों द्वारा किया गया था। उन आक्रमणकारियों से आज के मुस्लिम भाईयों का क्या रिश्ता है? यदि कुछ हैं भी, तो एक मालिक और गुलाम का संबंध हैं। क्योंकि ये मुगल और अन्य सुल्तान धर्मांतरित भारतीय मुसलमानों को भी नीच दृष्टि से देखते थे। वे उन्हें बड़ा नेतृत्व देने से बचते थे. औरंगजेब ने कुरान और अल्लाह में विश्वास रखने वाले दाउदी बोहरा समुदाय के धार्मिक नेता की भी हत्या कर दी थीं। फिर भी यदि आज के मुसलमान औरंगज़ेब को अपना नायक मानते हैं, तो यह कोरी अज्ञानता और हिंदू घृणा है।
सभी जाति धर्मों में कुछ लोग बुरी प्रवृत्ति वाले होते हैं। अन्नाजी दत्तो जिन्होंने स्वराज्य को धोखा दिया, या वो धार्मिक नेता जिन्होंने तुकाराम गाथा को डुबाने का आदेश दिया, वे ब्राह्मण थे। शिवाजी महाराज के सगे रिश्तेदार मम्बाजी भोसले, जो अफ़ज़ल खान की सेना में थे, और गनोजी शिर्के जिन्होंने संभाजी राजा को पकड़ लिया था, ये सभी जाती से मराठा थे। लेकिन क्या आपने कभी ब्राह्मण महासभा में अनाजी पंत की तस्वीर या मराठा मोर्चा में गनोजी शिरके की तस्वीर देखी है? क्या कोई ब्राह्मण जाति देखकर अनाजी का जयजयकार करता है? महाराष्ट्र में ये असंभव है!
तो मुस्लिम समाज में 'बाप तो बाप ही होता है' कहकर असामाजिक लोग औरंगजेब जैसे हैवान की जय-जयकार कैसे कर रहे हैं? क्योंकि सेक्युलर नेताओं के प्रभाव में सत्य इतिहास को दबाया गया।
जिन मुसलमानों ने सच्चा इतिहास पढ़ा, उन्हें अपने पूर्वजों के बर्ताव का बुरा लगा और उन हिंदुओं पर गर्व हुआ जिन्होंने सदियों के उत्पीड़न के बावजूद मुसलमानों को अपना माना। ASI के श्री. के.के. मुहम्मद इन सभी अत्याचारों को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं और प्रायश्चित की भावना से टूटे हुए मंदिरों के पुनर्निर्माण के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। क्या यह सराहनीय नहीं है? लेकिन केके मुहम्मद जैसे या महाभारत पढ़ने वाले अब्दुल कलाम साहब जैसे मुसलमान percentage में बहुत कम हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर आज भी धर्मनिरपेक्षता का लेप चढ़ाकर झूठा इतिहास पढ़ाया जाता है। धार्मिक इतिहास के नाम पर औरंगजेब का महिमामंडन किया जाता है. जब तक इसे रोका नहीं जाएगा तब तक धार्मिक संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा और यह तय है कि भविष्य में भी यह समस्या बढ़ती रहेगी।
- प्रथमेश चौधरी
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