इसरो की कीमत

हॉलीवुड फिल्म से भी कम लागत में बना चंद्रयान!  चाँद की इतनी सस्ती यात्रा!  मीडिया ने ऐसा ही कुछ न कुछ कहकर वैज्ञानिकों की तारीफ तो की, लेकिन वास्तव में ये सरकार की कमियों पर पर्दा डालने की कोशिश है.

 निःसंदेह किसी प्रोजेक्ट को कम लागत पर स्थापित करना एक अच्छा विचार है, लेकिन विज्ञान पर खर्च करने में कंजूसी की वास्तविक "क़ीमत" क्या है? देखिए 👇

 • अभियान का दायरा सीमित रहता है।  कोई भी योजना बनाते समय यान को कहां भेजना है, उसके घटक क्या होंगे, उस यान द्वारा कौन सी महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की जानी है, इस पर विचार किया जाता है।
 • फिर प्रत्येक घटक की लागत प्रस्तावित करके सरकार को भेजी जाती है।
 • लेकिन इसरो का इतिहास ऐसा रहा है कि आज तक इसरो को जरूरत के अनुसार कभी पैसा मिला नही है।
 • प्रस्ताव मिलने के बाद सरकार फल सब्जियों की तरह देश के अनुसंधान का मोल-भाव करती है। दुर्भाग्य ये है, कि बीजेपी ने भी कांग्रेस की इस परंपरा को जारी रखा है.
 • वैज्ञानिकों को हमेशा कोम्प्रोमाईज़ करने की भूमिका निभानी पड़ती है. अगर सरकार का विरोध किया तो बजेट और कम हो जाएगा इस डर में रहना पड़ता है. फिर सरकार मोलभाव करके जो भी बजेट दे, उसमे काम चलाने के लिए अनुसंधान का दायरा कम कर दिया जाता है।
 • कई अदूरदर्शी लोग सोचते हैं कि इस सबकी क्या आवश्यकता है।  उन्हें ये समझना होगा कि संशोधन/ अनुसंधान एक प्रकार का समुद्र मंथन है।  इसका क्या परिणाम निकलेगा, इसकी भविष्यवाणी नही कर सकते है।  फिर भी देश की समस्याओं के समाधान में सबसे अधिक सहायक research ही रहा है।
 • यदि धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग को छात्रवृत्ति देने की फिजूलखर्ची के कारण सरकार के पास पैसा नहीं बचा है, तो इस क्षेत्र में पूरी तरह से निजीकरण करना ही सही है। लेकिन अगर आप शोध के सागर मंथन से निकलने वाले खर्च का ज़हर निजी क्षेत्र को दे देंगे, तो उत्पादन के अमृत पर भी निजी क्षेत्र का अधिकार हो जाएगा।
 • यदि कल को UPI लेनदेन पर टैक्स लगाया जाता है, तो आप सरकार से जवाब मांग सकते हैं क्योंकि वह तकनीक सरकार के स्वामित्व में है।  लेकिन ध्यान रखें कि अगर गूगल मैप नेविगेशन के लिए चार्ज लेता है तो आपको शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं होगा।

 तात्पर्य यह है कि भारत वैज्ञानिक अनुसंधान पर आय की दृष्टि से बहुत कम खर्च करता है।  इसके लिए सरकार को, फिर वो चाहे किसी भी पार्टी या विचारधारा की हो, जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए

 - प्रथमेश चौधरी

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