महात्मा : जिसने सदियों का युद्ध समाप्त कर दिया!
"मेरा ही ईश्वर सत्य है और कोई अलग ईश्वर हो ही नहीं सकता" ये घोषणा आपने अलग-अलग भाषाओं में कम से कम 5 बार सुनी होगी ।
अतीत में हमारे हिन्दू धर्म में भी ऐसी छोटी विचारधारा को लेकर मतभेद होते रहते थे। वे मतभेद इतने चरम पर थे कि युद्ध तक की नौबत आ जाती थी। महादेव, विष्णु, गणपति, दुर्गा और सूर्य के उपासक आपस में लड़ते रहते थे। जिस तरह यूरोप और पश्चिमी एशिया ने इस्लाम और ईसाई धर्म के खिलाफ भयंकर 'धर्मयुद्ध' युद्ध लड़े, हमारे यहां भी ऐसे ही युद्ध हुए।
लेकिन केरल में पैदा हुए एक महात्मा ने पूरे भारत में यात्रा की और ऐसी आयडिया लगाई कि ये विवाद हमेशा के लिए सुलझ गए. और आज जो हिंदू धर्म हम देखते हैं वह सहिष्णु बन गया।
खास बात यह है कि उन्होंने इस आईडिया को किसी पर थोपा नहीं, खून की एक बूंद भी नहीं बहायी. उन्होंने विज्ञान द्वारा ही यह धार्मिक क्रांति लायी। वह महात्मा अर्थात आदि शंकराचार्य।
उपर्युक्त पांच देवताओं की पूजा करने वाले पांच संप्रदाय थे। इन्हें क्रमशः शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त और सौर कहा जाता था। ये सभी लोग अपने-अपने देवताओं की तो लगन से पूजा करते थे, लेकिन अन्य देवताओं के प्रति उनके मन में बहुत घृणा और द्वेष था। पूजा-पाठ से उपजे इस विवाद को पूजा से ही मिटाया जा सकता है ये सोचकर आदी शंकराचार्य ने एक शानदार तरकीब निकाली जिसे पंचायतन पूजा कहते है. कई सोर्स ये भी कहते है कि ये पूजा उन्होने किसी पुराण से ही प्रेरित होकर अपनाई थी.
इस पूजा के अनुसार प्रत्येक संप्रदाय अन्य चार देवताओं को चारों कोनों में स्थापित करके केंद्र में अपने इच्छित देवता की पूजा करता है।
इसका मतलब कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी संप्रदाय का हो, वह सभी देवताओ की पूजा करता है. इस छोटे से परिवर्तन के कारण कोई भी अन्य देवताओं की निंदा नहीं करना चाहेगा क्योंकि अब सभी की पूजा की जाने लगी!
परिणामस्वरूप, सम्प्रदायों के बीच का भेदभाव नष्ट हो गया और सम्पूर्ण हिन्दू समाज वैचारिक रूप से एकजुट हो गया। आज भी अनेक उपासक इसी पद्धति का पालन करते हैं। लेकिन हम कर्मकांड से आगे बढ़कर इस पर गौर नहीं करते, ये दुर्भाग्यपूर्ण है...
इसी पंचायतन पूजा को ध्यान में रखकर बनाया गया एकता का मंत्र देने वाला एक सुंदर मंदिर पुणे की पर्वती पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर को पेशवा बाजीराव के बेटे पेशवा नानासाहेब ने बनवाया था. यदि आप कभी पुणे गए, तो वहां अवश्य जाएं और आदि शंकराचार्य को धन्यवाद कहें जो एक वास्तविक महात्मा हैं। उस मंदिर के बाकी हिस्सों का भी मराठों के इतिहास से बहुत गौरवशाली संबंध है। उस पर भी लिखूंगा, लेकिन फिर कभी....
- प्रथमेश चौधरी
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