स्वामी विवेकानंद और छत्रपति शिवाजी महाराज
एक संस्था का सचिव स्वामी विवेकानन्द से मिलने गया। वे विभिन्न विषयों पर चर्चा करने लगे। सचिव साहब ने स्वामीजी को रॉयल पैलेस में आमंत्रित किया, संस्थान के महाराजा का संदेश सुनाया और थोड़ी सामान्य चर्चा हुई। अचानक स्वामी जी ने मधुर स्वर में एक हिन्दी गाना गाना शुरू कर दिया।
“तेज तमअंसपर कन्ह जिमी कंसपर
त्यो मलेच्छवंशपर शेर शिवराज है!!”
ये शिवाजी महाराज के दरबार मे स्थित मथुरा के कवि भूषण की रचना है.
इससे वहां बैठे एक मद्रासी डॉक्टर परेशान हो गए। उन्होंने सोचा कि 'शिवाजी तो बेईमान, चोर, हत्यारा और गद्दार हैं।'
दरअसल उस समय शिवाजी महाराज के बारे में जो भी साहित्य लिखा गया वह सिर्फ मराठी में था। खाफ़ी खान जैसे लोगों की किताबों का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद तो किया गया था, लेकिन चूंकि वह मुगलों को अपना आदर्श मानते थे, इसलीये जहां भी शिवराय(शिवाजी महाराज) का उल्लेख किया गया है, उन्होंने उपरोक्त अपशब्दों का ही प्रयोग किया है।
ऐसे ही मुगल भक्त लेखक की किताबें पढ़कर डॉक्टर साहब शिवाजी महाराज को गाली दे रहे थे. उन्होंने अपने विचार स्वामीजी को बताए.
तुरंत स्वामीजी ने गाना बंद कर दिया और गुस्से से बोले, "डॉक्टर साहब, आपको इस पर शर्म आनी चाहिए!! आप दक्षिण से होते हुए भी हमारे राष्ट्रीय नायक की असली पहचान नहीं जानते? ऐसा धर्मपालक राजा दुनिया मे और कहां हुआ है! शिवाजी महाराज मतलब ईश्वर का वो आशीर्वाद है जिसकी साधु संतों ने सैकड़ो साल प्रतीक्षा की हो! शिवराया से सीखें कि धर्म का आचरण और रक्षा कैसे की जाती है! सचमुच शिवाजी महाराज ने भारत के देशभक्तों की कई पीढ़ियाँ बनाई हैं!”
ये डॉक्टर जिनका नाम एम.सी. नंजुंदा राव था, वो शर्मिंदा थे। उन्हें अपने इतिहास का अध्ययन न करने की गलती का एहसास हुआ। ये सारी रिपोर्ट उन्होंने खुद वेदांत केसरी पत्रिका में लिखी है.
लेकिन अगर उस समय शिवाजी महाराज का सारा साहित्य मराठी में उपलब्ध था, तो बांग्ला जानने वाले विवेकानन्द ने शिवराया को कैसे समझा? इसके पीछे थे बाल गंगाधर तिलक. कई वर्ष पहले विवेकानन्द की तिलक से मुलाकात एक ट्रेन में संयोगवश हुई थी। बाद में कलकत्ता में भी एक मुलाकात हुई.
तिलक के राष्ट्रीय स्तर पर शिवजन्मोत्सव मनानेके प्रयासों के कारण ही लाला लाजपतराय, जदुनाथ सरकार, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पंजाब, उत्तर भारत और बंगाल में शिवाजी महाराज पर साहित्य लिखा!
क्या आज शिवचरित्रप्रसार के इस अधूरे कार्य को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है? मराठों को जातिवाद में फंसे बिना "धर्मरक्षक मराठा" यही एक मात्र पहचान समझकर महाराष्ट्र की सीमाओं को पार करना होगा। शिवाजी महाराज का कार्य घूम घूम कर भारत के हर घर तक पहुंचाना होगा. उसके बिना सम्पूर्ण भारत में फैली मुगल प्रेम की दुर्गंध नही हटेगी.
- प्रथमेश चौधरी
संदर्भ:
1. Incident with Vivekananda : M.C. Nanjunda, Vedanta Kesari part 1 & 2
2. Incident with Vivekananda : https://arisebharat.com/2014/06/11/swami-vivekananda-on-shivaji-quoting-bhushan-kavi/
3. Khafikhan and his anti Hindu thiughts : Preface, Lala Lajpatrai, Chhatrapti Shivaji Maharaj (1896)
4. Tilak and Vivekanand's meeting : Vivekananda Kendra official website. https://katha.vkendra.org/2013/08/swami-vivekanandas-impact-on-b-g-tilak.html?m=1
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