पापड़ की कहानी

पापड़ की कहानी


ये उस दौर की बात है जब मुंबई का नाम बॉम्बे हुआ करता था. South Bombay के भीड़ भाड़ वाले इलाके में रहने वाली कुछ housewives एक दूसरे से गप्पे लड़ा रही थी. 


लेकिन उनकी चर्चा का विषय टिपिकल सास बहू वाले सीरियल, फॅमिली पॉलिटिक्स या फिर चुगलखोरी नहीं था. उनकी चर्चा हो रही थी आत्मनिर्भर होने के विषय में। इंडिपेंडेंट वुमनिया होना उन्हें पसंद था, लेकिन उनका फेमिनिज्म केवल परिवार को दोष देने जितना छोटा नही था. वे तो अपने परिवार को आर्थिक मजबूती देने की सोच रखती थी। अपने पार्टनर का आर्थिक बोझ कम करना चाहती थी।


 लेकिन मुख्य सवाल यह था कि आखिर वो महिलाए क्या कर सकती थी? उन्होंने तो पूरी शिक्षा भी प्राप्त नहीं की थी! 


 उनमें से 7 ने सोचा कि हमें जो पसंद है, जो हमें बिल्कुल परफेक्ट आता है, उसका उपयोग करके हमें कुछ व्यवसाय करना चाहिए।  उन्होंने जल्द ही कुछ पैकेट भरे और कच्चे पापड़ बनाए.  इस उद्योग को शुरू करने के लिए उन्हें 50 रुपये की पूंजी की आवश्यकता थी।  और इस तरह ब्रांड लिज्जत पापड़ का जन्म हुआ।



 अर्ध-शिक्षित महिलाओं के इस ब्रांड ने 45000 महिलाओं को रोजगार दिया।  उन 7 सहेलियों द्वारा बनाई गई इंडस्ट्री आज सफलता के पायदान चढ़ रही है, लेकिन उनमें से सबसे बुजुर्ग 93 वर्षीय पद्मश्री जसवंतीबेन पोपट जी का हाल ही में निधन हो गया।



 भारतीय महिला को हमेशा "बेचारी अभागन" प्रकार के रूप में चित्रित किया जाता है।  इसका प्रतिवाद करने के लिए उदाहरण भी एकदम धार्मिक या ऐतिहासिक दिये जाते हैं।  लेकिन जो महिलाएं आज के समय मे exist करती है और उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है, वो कभी प्रकाश में नही आती. और जो केवल दिखावे के लिए फेमिनिस्ट बनती है, उन्हें ग्लैमर मिलता है।  तो क्यों न हम अंधेरे में रहने वाली इन महान महिलाओं के लिए जानकारी रूपी प्रकाश का एक दीपक जलाएं?


जसवन्ती बेन को श्रद्धांजलि। उनका जीवन वास्तव में इन पंक्तियों का परिचायक है, और हमसे सवाल करता है, हमें challange करता है


"जन्म मरण का खेल अनूठा, उसमे हार नही है,

वो क्या चल पाएगा जिसको, पथ से प्यार नही है!"



 - प्रथमेश चौधरी

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